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असहिष्णुता

मन का सेठा
मन का सेठा
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आज अचानक वो मिल गयी ,
उदास, सकुचाई हुई, बार-बार आंचल में चेहरा छिपा रही थी…
रोकना चाहा, सहम गई…
पूछा मैंने — ” क्या हुआ , परेशान लगती हो?
बोली कुछ नहीं ,बस खाली आंखों से टुकुर टुकुर देखे गयी ..
मैंने पास बिठाकर पूछा — कुछ तो कहो अपने मन की..
भर्राए गले से बोली , ” क्या बताऊँ जो मेरे मालिक हैं , आजकल जबरदस्ती मुझे किसी और की मिल्कियत बनाने पर तुले हैं ।”
मैंने कहा जरा खुलकर बताओ, कौन हो? कहाँ से आई हो?
कहने लगी, क्या कहूँ .. 🙁
गिरे दिन हैं , हर तरफ से बातें सुन रही हूँ ..
एक समय था जब रानी की तरह रहती थी, ठाठ थे मेरे…
मैंने कहा– अरे, ऐसा भी क्या .. अच्छा अपना नाम तो बताओ?
…… उसने इधर उधर देखा, फिर मेरे कान में फुसफुसा कर कहा.. ” मेरा नाम है, असहिष्णुता ” ॥
हैं ?? तुम, तुम ही हो.. आजकल तो बड़े चर्चे हैं तुम्हारे ..
अरे क्या खा़क चर्चे? जिसे देखो वही कोस रहा है, :'( यहाँ तक कि बरसों से जिनके दिलों में हूँ , वो भी मेरा नाम ले ले कर… हूंऊँSSSSSSSSSS

उसके सफेद बालों और पोपुले मुंह को देखकर चौंक गई मैं…
अम्मा तुम्हारा जन्म तो अभी हुआ है.. भारत में , लेकिन तुम्हारी उम्र से तो…. ??
” धत् पगली” शर्माकर बोली वो…
मेरी पैदाइश तो बहुत पुरानी है,
एक ठंडी आह भरकर उसने बोलना शुरू किया ….
मेरा जन्म कब और कहाँ हुआ याद नहीं लेकिन मुझे याद है, जब जवान हुई तो उसका दिल मुझपर आया था, मुहम्मद बिन कासिम नाम था उसका– लाल होते चेहरे के साथ बोली वो ..
रानी बनाकर वो मुझे भारत लाया था.. उस जैसे फिर न जाने कितने आए.. सबने मुझे अपने दिल में जगह दी..
मुझे रिझाने को क्या क्या नहीं किया गया…
जजिया कर
जबरन धर्म परिवर्तन
लूट
बलात्कार
और भी न जाने क्या-क्या
फिर इस देश में मैंने बहुत कुछ देखा..
अंग्रेजों का आना, जलियांवाला , गांधी नेहरू सबकुछ …
और एकदिन सुना कि ये देश आजाद हो गया ..
बंटवारा हुआ है भारत का और मुझे भी जाना होगा …. मेरे तो होश उड़ गये..
पर इस देश के आकाओं ने मुझे बचा लिया… कहा उसपार तो तुम रहोगी ही और चाहो तो यहाँ भी… छिपकर… हांलाकि सीरिया , ईराक, पाकिस्तान जैसे देशों में मैं खुलकर रहती हूँ …

तबसे मैं कुछ लोगों के दिल में छिपकर रहने लगी ….
डरती रहती थी कि कोई पहचान न ले..

जब कश्मीरी पण्डितों को कश्मीर में भगाया जा रहा था तब भी मैं वहीं थी,
जब सिख दंगे हुए तब भी मैं वहीं थी,
जब 26/11 हुआ तब भी मैं वहीं थी…
लेकिन आजतक किसी ने मुझपर उंगली नहीं उठाई …
पर न जाने क्यूं अचानक … इस निगोड़ी सरकार के आते ही….
अब मेरा क्या होगा ? उसने थोड़े डर और आशा से मेरी तरफ देखा…..

मैंने सामने लगे तिरंगे के तीनों रंगों को गौर से देखते हुए कहा..

तुम रहोगी..

उन लोगों के दिलों में जो न इस देश को छोड़ते हैं , न अपनाते हैं ….

जबतक इस देश के स्वघोषित बुद्धिजीवियों के दिमाग में अलग दिखने का कैमिकल लोचा होता रहेगा , तुम उनके दिमाग में रहोगी…

जबतक इस देश की मीडिया दलाली खाती रहेगी , तुम उसकी फ़ितरत में रहोगी…..

तुम रहोगी…

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